User:Parakhtimessharma

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1857 पर नई इबारत से रूबरू होगा लाल किला -डॉ0 शर्मा April 9, 2018Uncategorized download220px-Red_Fort_8IMG_20180405_161445464 27 मार्च को नोएडा स्थित डिजाइनिंग फर्म पर मंथन राष्ट्रीय समेत वैश्विक पृष्ठभूमि पर होंगे प्रयोग मथुरा, दफन के लिए वतन की दो गज जमीं को तरसते रहे 1857 की जंगे आजादी के अंतिम जांबाज मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर द्वितीय की हसरत रंगून में मरने से भले ही अधूरी रह गई हो। मगर बगावत का पुरवकार लाल किला, संग्रहालय की नई इबारत के जरिये उसे शहादत के 150 वर्षों बाद पूरा कर दिखायेगा। यह प्रयोग डॉ0 रमेश चन्द्र शर्मा स्मारक शोध एवं सेवा संस्थान और डिजाइन फैक्टरी इण्डिया के संयुक्त तत्वावधान में नोएडा सेक्टर 8 क्षेत्र के सी28सी स्थित परिसर की बैठक में किया गया। संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं सत्तावनी नई इबारत परियोजना के सूत्रधार डॉ0 सुरेश चन्द्र शर्मा ने आरोप लगाया कि लाल किले में 1857 के बाबत शोधमूलक प्रयोग नहीं किये गये जिसके चलते आजादी की पहली जंग का समष्टिगत रूप जनता के सामने नहीं आ पाया। आगे कहा कि सत्तावनी घटनायें लोकप्रिय कथानकों तक सीमित रहने दी गई और उनका वैश्विक स्वरूप प्रदर्शन से गायब होता गया। कहा कि कार्ल मार्क्स समेत तमाम विश्वस्तरीय विद्वानों की प्रतिक्रियाओं और समाचार पत्रों की समीक्षायें संकलन, प्रदर्शन एवम् अभिलेखन से इस हद तक वंचित रखी गई कि लोगबाग दिल्ली केन्द्रित विद्रोह और राष्ट्रीय राजधानी के कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरण की वजह से भी वाकिफ नहीं हो सके। डॉ0 शर्मा ने खुलासा किया भौगोलिक कारणों से दिल्ली को सत्तावनी क्रान्ति का केन्द्र बनाया गया जिसकी कामयाबी के बाद रूस ने अंग्रेजों को कलकत्ता से खदेड़ बाहर करने की गुप्त जिम्मेदारी ली थी। मगर दुर्भाग्यवश दिल्ली फतह नहीं हो सकी और प्रशासनिक कमजोरी की भनक लगने पर अंग्रेजों ने दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी बनाने का मन बना लिया जो 1911 में जाकर पूरा हो सका और जिसके 2011 में सौ वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में कामनवेल्थ का जश्न मनाया गया। डॉ0 शर्मा ने प्रस्तावित संग्रहालय में 1857 के बारे में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से बंगाल व आसाम की गुप्त और प्रकट घटनाओं के प्रदर्शन पर जोर दिया। बताया कि 1857 से पूर्व बगावत की सुगबुगाहट कश्मीर से शुरू हो चुकी थी और वहाँ से फलों के व्यापार की आड़ में बाहरी मुल्कों से बगावती पत्रों के मिलने पर कश्मीर नरेश गुलाब सिंह तलब भी किये गये थे। डॉ0 शर्मा ने रोष जताया कि सत्तावनी दिल्ली के प्रदर्शन में आगरा, मथुरा, मेरठ समेत निकटवर्ती इलाकों को भी नजरअंदाज किया गया जिसके चलते भी राष्ट्रीय क्रान्ति के असली नायक स्मरणीय नहीं बन सके। आगे कहा कि मथुरा मण्डल के मंगल पाण्डे अख्तियार खाँ ऐसा ही व्यक्तित्व था जिसे जहाँ बलिदान के 160 वर्षों तक गुमनामी में रहना पड़ा, वहीं उसके साहस के साक्ष्य में कोई स्मारक नहीं बनाया जा सका। कहा कि निकटवर्ती इलाकों के क्रान्तिकारियों ने ही तन, मन और धन के साथ बहादुरशाह जफर की नुमाइन्दगी मेें अंग्रेजों के बरखिलाफ सिर उठाया था और उसके बाबत 1856 में एक गुप्त कांफ्रेंस स्वामी विरजानन्द की अध्यक्षता में मथुरा के जंगलों में हो चुकी थी जिसमें बहादुरशाह जफर द्वितीय के शहजादे, नाना साहब, मौलवी अली मुल्ला खाँ, रंग बापू र्साइं मियां महमूदन शाह ने भागीदारी की थी। डॉ0 शर्मा ने क्षोभ जताया कि 1857 की समीक्षा में अंग्रेजों के योगदान की उपेक्षा ने भी विद्रोह की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठापना को गहराई तक प्रभावित किया जिसके चलते भी सत्तावनी क्रान्ति के कारण जातीय बनते गये और उसका मौलिक स्वरूप विस्मृत होता गया। आगे कहा कि 1857 के प्रथम स्वप्नदृष्टा अर्नेस्ट जोन्स ने विद्रोह से एक दशक पूर्व इंग्लैंड में न केवल उसके घटित होने की भविष्यवाणी की थी बल्कि भारतीयों पर अंग्रेजों की ज्यादतियों को लेकर ब्रिटिश हुकूमत का विरोध भी किया था जिसके चलते उसे जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। मगर भारत में अत्याचारी अंग्रेजों की निंदा में तो कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी गई लेकिन उसी देश के भारतप्रेमी आन्दोलनकारियों को स्वतंत्रता आन्दोलन का नायक नहीं माना गया। डॉ0 शर्मा के शोधमूलक नजरिये पर डिजाइन फैक्ट्री की ओर से कु0 प्रतिष्ठा ने अनुमोदन किया और उनके अभिलेखन, प्रदर्शन एवं प्रचार-प्रसार पर सहमति जताई।